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अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा

क्षत्रिय समाज में शैक्षणिक एवं साँगठनिक चेतना वर्षो पहले आ चुकी थी इस मामले में हमारा समाज बहुत ही अग्रणी रहा है जिसमें राजा बलवंत सिंह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है.एटा जिले के अबागढ़ क्षेत्र के बरी गांव के जागीरदार ठाकुर चतुर्भुज सिंह के परिवार में 21सितंबर 1853 को बलवंन्त सिंह का जन्म हुआ.जो मूलतः करौली के जादौन थे ये तीन भाई बलदेव सिंह बलवंन्त सिंह एवं भोजराज सिंह थे.बलवंत सिंह का प्रथम विवाह एटा जिले के गांव दलशाहपुर के जमींदार दुर्गपाल सिंह की बहन के साथ हुआ था जिनकी मृत्यु शीघ्र हो गयी. द्वितीय विवाह चौहान राजपूत राजवंश छलेश्वर की कलावती के साथ हुआ था. बलवंन्त सिंह अपने बड़े भाई राजा बलदेव सिंह के साथ रियासत का सभी कामकाज देखते थे. राजा अबागढ़ बलदेव सिंह की मृत्यु के पश्चात् 1892 में अबागढ़ रियासत पर विराजमान हुए.उन्हें गद्दी पर बिठालने में ठाकुर उमराव सिंह कोटला का बड़ा योगदान रहा.रियासत संभालने के उपरान्त रियासत की आय बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया. तत्समय ब्रिटिश शासन होने के बाबजूद उन्होंने मान सम्मान बनाये रक्खा. बचपन से व्यायाम एवं घोड़े पालने का बहुत शौक था. प्राचीन भारत में ग्रामवासियो की शिक्षा संसार के किसी भी अन्य देश के किसानो से भारत के अनेक भागों में ऊँची थी. ईस्ट इंड़िया कम्पनी ने भारत की सैकड़ो वर्ष पुरानी ग्राम पंचायतों को नष्ट कर डाला उस समय ग्राम के समस्त बच्चों की शिक्षा का प्रवन्ध करना ग्राम पंचायत का काम हुआ करता था. यही कारण था कि शिक्षा का उचित प्रवन्ध न होने के कारण राजा बलवंन्त सिंह शिक्षित न हो सके. जिसके कारण उन्हें बहुत ही असुविधा होती थी. बिना पढ़े लिखे होने के बाबजूद उनकी बुद्धि चातुर्य सराहनीय था.उनके मन में शिक्षा का अभाव हमेशा ख़टकता रहता था.वे खुद तो अशिक्षित थे इस पीड़ा से उनके हृदय में राजपूतो के शैक्षणिक विकास की भावना का दर्द जाग्रत हुआ. अतः उन्होंने ग्रामीण अंचल के राजपूत बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था करने का संकल्प लिया एवं शिक्षा संस्था का प्रारूप तैयार करने का चिंतन शुरू कर दिया.

. उन्ही दिनों में सन 1885 में कोटला (आगरा )के ठाकुर नौनिहाल सिंह और उनके बड़े भाई ठाकुर उमराव सिंह ने आगरा नगर के बाग फरजाना में स्तिथ निजी कोठी के बाहरी भाग में एक छात्रावास की स्थापना कर डाली जिसमें 20 राजपूत क्षात्रों के आवास भोजन एवं शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी. इस संस्था को सुचारु रूप से चलाने हेतु कुछ स्वजातीय जमींदार जिनमें प्रमुख रूप से राजा बलदेव सिंह अबागढ़ राजा लक्ष्मण सिंह बजीर पुर (आगरा )ठाकुर लेखराज सिंह गभाना (अलीगढ )ठाकुर कल्याण सिंह जलालपुर (अलीगढ )सहयोगी के रूप में खड़े हुए. और तन मन धन से इस संस्था को आगे बढ़ाने के लिए जुट गए. सन 1887में सयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर के द्वारा राजपूत छात्रावास का बिधिवत शुभारम्भ किया गया. रानी विक्टोरिया की जुबली होने के कारण उसका नाम जुबली राजपूत बोर्डिंग हॉउस रक्खा गया. तत्समय पड़े भीषण अकाल के समय राजा बलवंन्त सिंह ने अपने खजाने भण्डारो को खोलकर क्षेत्रीय जनता की भरपूर मदद की. जिसकी अंग्रेज सरकार ने भी प्रशंसा की और उन्हें कॉमपेनियन ऑफ़ द इंडियन (सी आई इ )की उपाधि से सम्मानित किया गया. कुछ समय पश्चात राजा बलवंन्त सिंह पंडित मदनमोहन मालवीय काला कांकर (प्रतापगढ़ )के राजा रामपाल सिंह और कोटला के ठाकुर उमराव सिंह के प्रत्यनो से यह जुबली राजपूत बोर्डिंग हॉउस छात्रावास ने एक वास्तविक विद्यालय का रूप 1898में धारण कर लिया था. लेकिन इसकी औपचारिक शुरुआत 28अगस्त 1899में राजपूत हाईस्कूल के रूप में आगरा डिवीजन के कमिश्नर द्वारा की गयी. यह स्कूल उक्त रियासतों के महानुभाव के मासिक एवं अनियमित चंदे से चलता था. विद्यालय को इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त हो गयी.1901के प्रथम बेच के रूप में मेट्रिक परीक्षा राजपूत क्षात्रों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बन्धित इस स्कूल से पास की. सन 1906 में राजा बलवंन्त सिंह ने अपनी रियासत से 1लाख रूपये स्कूल की ईमारत बनाने हेतु दान दिए. जो 1913के मध्य तक बन कर तैयार हो गयी.1908 मे यह स्कूल राजा बलवंन्त सिंह के अधीन रहा. अपने निधन के पूर्व राजा साहब ने 1909 में एक वसीयत की जिसके अनुसार 9लाख 30हजार रूपये तथा खदारी गांव के निकट 49एकड़ का फार्म संस्था के लिए प्रदान किये. संस्था सिर्फ 15 वर्ष की हो पायी थी कि 21जून 1909 में राजा बलवंन्त सिंह इस संस्था को एक पौधे के रूप में छोड़ गए. राजा बलवंन्त सिंह के इस दान ने शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति पैदा कर दी.हालांकि उस समय राजा महाराजाओं के लिए इतना दान देना कोई बडी वात नहीं थी परन्तु समय और आवश्यकता के अवसर पर जो दान दिया जावे उसका अधिक महत्व होता है. राजा बलवंन्त सिंह के इस परोपकारी कार्य को आगे बढ़ाने में कोटला परिवार के ठाकुर कुशल पाल सिंह ठाकुर ध्यानपाल सिंह ने तन मन धन से 1923 में निष्ठां से पूर्ण किया. उनके द्वारा लगाया गया यह पौधा अब एक विशाल कल्प वृक्ष होकर मनोवांक्षित फल दे रहा है. आपके दोनों पुत्र सूरज पाल सिंह और कृष्ण पाल सिंह अव्यस्क थे अतः संस्था का संचालन कोटला परिवार में चला गया. जुलाई 1928 में संस्था को इंटर् मिडिएट कॉलेज बना दिया गया. सन 1940 में ये डिग्री कॉलेज बन गया. जिसके विकास में अबागढ़ राज परिवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसके पास 1100एकड़ जमीन है. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का गठन समाज के प्रति सकारात्मक सोच का परिणाम वात उस समय की है कि ज़ब अंग्रेजी हुकूमत थी भारतीयों को विवश कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. देश भर में हिंसा एवं मारकाट का तांडव मचा रखा था तब कालाकांकर प्रतापगढ़ के राजा हनुमान सिंह जी के नेतृत्व में रामदल के रूप में एक संगठन प्रभाव में आया. इस राम दल ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा जिसमें सैकड़ो क्रन्तिकारी शहीद हुए. इसकी विफलता के बाद सन 1860 में क्षत्रिय हित कारिणी सभा का गठन किया गया. इसमें भी तमाम विसँगतियाँ पैदा हो जाने के कारण राजा बलवंन्त सिंह जिन्हे राजपूत जाति से अगाध प्रेम था. उन्होंने क्षत्रियों के सामाजिक उत्थान के लिए अबागढ़ के राजा बलवंन्त सिंह कोटला के ठाकुर उमराव सिंह एवं भिंगा उत्तर प्रदेश के राजा उदयप्रताप सिंह व अन्य क्षत्रियों के सहयोग से क्षत्रिय हितकारणी सभा को बदलकर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का गठन 1897 में किया गया 19 अक्टूबर 1897में लखनऊ में पंजीकृत कराया गया.राजा बलवंत सिंह जी इसके प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित हुए. इसका पंजीकृत कार्यालय लखनऊ एवं प्रधान कार्यालय मथुरा में रक्खा गया. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा कि प्रथम सभा आगरा में राजपूत बोर्डिंग हॉउस में 20 जनवरी 1898 में की गयी. जिसमें राजपूत समाज में एकता एवं जागृति लाने के उद्देश्य से एक न्यूज़ लेटर प्रकाशित कराने का तय किया गया जिसे "राजपूत मासिक "के नाम से प्रकाशित कराया गया. जिसके माध्यम से देश के बिभिन्न भागों में फैले हुए क्षत्रिय समाज में जागृति एकता लाने के लिए जन सम्पर्क एवं सभाए शुरू हुईं. अंग्रेजी हुकूमत काल में क्षत्रियों के शैक्षणिक विकास और सामाजिक उत्थान के लिए बहुत ही सकारात्मक पहल की गयी.हमारे इन महापुरुषों द्वारा बनाया संगठन आज भी जाग्रत होकर संगठनात्मक गतिविधियों में संलग्न है. एवं शैक्षणिक दिशा में राजा बलवंत सिंह महाविधालय आगरा व उदय प्रताप कॉलेज वनारस के रूप में हम देख रहें है. वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष का दायित्व पूर्व सांसद हरिवंश सिंह के पास है.उनकी टीम इस अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा को सफलता पूर्वक संचालित कर क्षत्रियों को संगठित करने एवं उनके उत्थान में सलग्न है. शिवपुरी जिले में कार्यरत पंजीकृत संगठन "क्षत्रिय महासभा जिला शिवपुरी "भी इसी अखिल भारतीय संगठन से सम्बद्ध है.

हमारे संरक्षक पूज्य गुरूजी का सन्देश

क्षत्रिय वर्ण का कार्य सृष्टि का सम्बर्धन व्यक्ति की चेतना के माध्यम से पूर्ण करना है जिसमें व्यक्ति की चेतना संरक्षण संवर्धन के माध्यम से व्यक्ति व समाज के उत्कर्ष का परम् उद्देश्य प्राप्त करना ही लक्ष्य (ध्येय )है. क्षत्रिय वर्ण अनादि काल से भारत की आध्यात्मिक शक्ति के विकास और संरक्षण के लिए कृति संकल्पित है जिसका माध्यम भारत की आध्यामिकता व दर्शन की शक्ति है. रघुवीर सिंह गौर संस्थापक -वर्ल्ड स्प्रीचुअल फाउंडेशन शिवपुरी|

अध्यक्ष का सन्देश

सम्माननीय बन्धुओं एवं मातृशक्ति
आप सभी को सादर जय श्री राम,
आज मुझे क्षत्रिय महासभा जिला शिवपुरी की यह वेबसाईट लांच करते हुए बेहद हर्षानुभूति हो रही है।इस वेबसाईट के माध्यम में हम अपने बिखरे हुए समाज को एकजुट करने और विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से समाज हित में कार्य करने का प्रयास करेंगे। जिसमें प्रमुख रूप से समाज में विवाह योग्य लडके-लडकियों का डाटा एकत्रित करना, क्षत्रिय महासभा के प्रमुख आयोजनों की विस्तृत जानकारी साझा करना। समाज के परिवारों की प्रोफाईलिंग करने समेत अनेक समाजहितैषी कार्य शामिल हैं।
बंधुओ, यह देश हमारे पूर्वजों की रियासतों के सम्मिलियन का प्रतिफल है। इसके निर्माण और उत्थान में हमारे अनगिनत वीरों का बलिदान समाहित है।
क्षत्रिय महासभा जिला शिवपुरी कुछ सिद्धांतों पर बनी सामाजिक संस्था है,जिसकी ताकत इसके सदस्यों और पदाधिकारियों में निहित है।
क्षत्रिय धर्म सदैव कमजोर और वंचित वर्ग के लिएएक छत्र के समान रक्षक रहा है। समस्त क्षत्रिय समाज से एकजुटता और अपने-अपने स्तर पर आत्मनिर्भर, सशक्त और मजबूत बनने का आह्वान करता हूँ।
क्षत्रियों के बारे में शास्त्रों में कहा गया है –
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धेचाप्यपलायनम्
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।

अर्थात् – शूरवीरता, तेज, धैर्य, प्रजाके संचालन आदिका विशेष चातुर्य, युद्धमें कभी पीठ न दिखाना, दान करना और शासन करनेका भाव -- ये सबकेसब क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म हैं।
हम सब मिलकर समाज केहित के लिए काम करें और समाज को मजबूती प्रदान करें। मैं अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए सदैव प्राण-प्रण से तत्पर तैयार हूँ। आप भी समाज के उत्थान और विकास का कोई कार्य-विचार बेझिझक मुझसे साझा कर सकते हैं, हम सब मिल बैठकर उस पर विमर्श कर मूर्तरूप देने और क्षत्रिय समाज के उत्थान हेतु साझा प्रयास करेंगे।
इसी विश्वास के साथ आप सभी को पुनः जय श्री राम

आपका –
सुनीत कुमार सिंह चौहान (एस.के.एस चौहान)
जिलाध्यक्ष, क्षत्रिय महासभा जिला – शिवपुरी (म.प्र.)